
कविताएं

जंग जो लड़नी है, जाँबाज़ होना होगा
सूखे दरख़्तों को अब हरा होना होगाडूबती कश्ती को किनारे खड़ा होना होगा छोड़ो ये डर ये बुज़दिली ये दर्द में रहनाजंग जो लड़नी है तो जाँबाज़ होना होगा वक़्त है ख़्वाबों को हक़ीक़त में बदलने कानाज़ुक कलाई कमज़ोर कंधों को मजबूत होना होगा कर लिया इंतिज़ार अँधेरे के हटने काअब सितारों को रौशनी में…

पहरेदार हूं गद्दार नहीं हूं मैं
बा-अदब, बा-ईसार,बा-ईमान हूँ मैंमुल्क है हमारा मुल्क की शान हूँ मैंऔर करें सब मोहब्बत इससे मेरी तरहना जाति ना मजहब इन सब से परे एक इंसान हूँ मैं वफ़ादारी का सुबूत ना मांगों ऐ लोगों मुझसेनफरतों को जो मिटा सके, वो तलवार हूँ मैंबात करते हो तुम इम्तियाज़ी की, तो बता दूंहक़दार हूं मादर-ए-वतन का,…

आओ नया मुल्क बनाएं
हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई चारों मिलएक थाली मे खाएंमुल्क की तरक्की का जिम्माअपने कंधों पर हम उठाएंआओ नया मुल्क बनाएं हरा,सफेद, केसरिया मिला एक तिरंगाअपने हाथों में उठाएंचारों मिल उसे बुलंदियों पर ले जाएँशीश शिखर पर अपना हम उठाएंआओ या मुल्क बनाएं क्यों ना तहजीबों की एक मसाल बनाएंएकता की चिंगारी से नफरतों को खूब…

एक ख्याल उनके नाम का
एक शख़्स बे-मिसाल देखा हैनर्गिसी-आंखें, काली पलकेंरंग गोरा ,सुनहरे बालरोने पर चेहरा लाल देखा है वो जो हसें,जग हसे उनकी हंसी में हीअब किसी एक की हंसी बसेसूरत से भोली सीरत का कमाल देखा हैक्या दूं उनको मिसाल जिन्हें बे-मिसाल देखा है हां माना खताएं होती हैं हमसेभटके हैं हम कई बार पर मेरेभटकने में…

कौमी एकता चाय से
सुबह की चाय होया हो शाम की अज़ान गीता पढ़े मुसलमानहिन्दू पढ़े क़ुरआन काश की ऐसा होहमारा हिंदुस्तान ✍️ मोहम्मद इरफ़ान

रंगों से तुम हमारी पहचान करते हो
रंगों से तुम हमारी पहचान करते होलाल से हिंदू हरे से मुसलमान करते हो हम हैं एक,एक है रंग खून का,फिर क्यूफैला कर नफ़रत यूं सरे आम करते हो पसंद है सबको सुकून-ए-क़ल्ब,तो क्योंनन्हें परिंदो को यूं बे-जान करते हो माना है मज़हब अलग,पर खुदा एक हैफिर क्यों मज़हब पर कत्ल-ए-आम करते हो फैला कर…

जाने कैसे वो खुद को मर्द बताते हैं
जाने कैसे वो खुद को मर्द बताते हैंवो बेक़सूर पे बिना वजह हाथ उठाते हैं भूल कर सारी मर्यादाभरी महफिल में वो यूँ गंदी नजरों से घूर जाते हैं खुदा के खौफ से भी वो दरिंदे ना घबराते है गुनाह करके भी ख़ुद को पाक साफ बताते हैं है ये चाल उनकी,जाने कहाँ से वो ये हुनर…

कहानी उस रानी की…
एक कहानी झांसी की रानी की बहादुरी के नाम क्यों भूल गए तुम उनकी कहानी को उस झाँसी वाली रानी को मैदान में जिसने दहाड़ा था हज़ार मर्दों को अकेले ही जिसने पछाड़ा था अपनों की शक्ल मे हर कोई पराया थावक़्त-वक़्त पर हर किसी ने पीठ दिखाया था अंग्रेजों की छाती पर बिगुल विजय का बजाया थासिर झाँसी…

तू सही मैं गलत, तू एक मैं अलग
तू सही मैं गलततू एक मैं अलगतू अंधेरी रात का चांदमैं चांद में लगे दाग़ सा तू हक़ीक़तमैं ख़्वाब सातू मधुर गीतमैं बदसुरे राग सा तू जलता सूरजमैं बुझे चिराग़ सातू शहजादीमैं गरीब नवाब सा तू रह होश मेंमुझे करके बेहाल जरातू रख ख्याल जरामुझे छोड़ दे मेरे हाल जरा कैसा तेरा मेरा वास्ताअलग है…

वो औरत है जनाब
वो बिन कसूर दर्द बेहिसाब सहती हैएक बार नहीं महीने मे सात-सात बार सहती हैउन दिनों वो सहमी सी रहती हैशर्म से बातें भी कहां किसी से किया करती है। क्या मंदिर क्या मस्जिद क्या घाट किनारेअब तो रसोई में जाने पर भी पाबंदी रहती हैकसूर ना होकर भी कसूरवार वो रहती हैये एक नहीं…