
कविताएं

बातें लखनऊ की
ए लखनऊ तेरी हवाओं में भी नज़ाकत बहती हैइस शहर में रहने भर से वाबाओं से शिफ़ा मिलती है आप जनाब का है तरीका अदब से बातें करते हैं लोगइमारतें हैं आ’ला देखने भर से चेहरों पर मुस्कान खिलती है जो आते हैं दूर-दराज़ से मुसाफ़िर यहीं के हो जातेयहां की चमक-धमक में भी एक…

कौन जाने कब क्या होगा
कौन जाने कब क्या-क्या होगाकिस्मत का लिखा किसे पता होगा किसी के सर सजेगा सेहराकोई कफ़न में लिपटा होगा दाएं से उठेगी डोली किसी कीबाएं किसी का जनाजा होगा बाद वक्त,किसी के घर गूंजेगी किलकारियांकिसी के घर आज भी मातम पसरा होगा किसी का लाल टहलेगा आँगन में, तब तकएक मां का चाँद बादलों में…

उम्मीद की एक रोशनी
बंद कमरा, खुली आंखों में जागते कई ख़्वाबमैं, मेरी तन्हाई चार दिवारी और चंद किताब घड़ी की टिक-टिक, काली सियाह अंधेरी रातबढ़ती उम्र, मांगती नाकामयाबी का हिसाब फिर पूछूं जो खुद से सवाल, किया क्या अब तकगहरी सोच, खामोश लब, नहीं मिलता कोई जवाब ‘उम्मीद’ ही सोच के समंदर में डूबती कश्ती को सहारा देतीआवाज़…

किसी में ज़्यादा किसी में कम है
किसी में ज़्यादा किसी में कम हैयहां हर शख्स की जिंदगी में गम है कोई खुश है कच्चे मकानों मेंकिसी के लिए महल भी कम है कोई छुपा लेता है अपने आंसूकिसी की आंखें आज भी नम है बद-हाली से कई हार चुके हैं ये जंगजीतेगा वही जिसमें जीतने का दम है। मोहम्मद इरफ़ान

मेरा गांव अपने लोग
यहां के अनाजों में सोने सी चमक मिलती हैखेत खलिहानों में हरियाली देखने को मिलती हैरहती है रौनक गांव के हर एक गली मेंएक दूसरे के दुखों में लोगों की भीड़ साथ मिलती है बहती है सुगंधित हवाएं चारों ओरसूरज की पहली झलक यहीं से देखने को मिलती हैनहीं होता कोई भेद भाव जाति मज़हब…

ऐ ज़िन्दगी तेरा शुक्रिया
इतनी सी उम्र में बहुत कुछ दियाए ज़िन्दगी तेरा शुक्रियाकभी मोहब्बत में इज़हार कियातो कभी मोहब्बत ने दरकिनार कियाए ज़िन्दगी तेरा शुक्रिया कभी गम में डूबेतो कभी खुशियों का अब्र दियाकभी सिर से छत छिनीतो कभी शाह का घर दियाए ज़िन्दगी तेरा शुक्रिया भूख से निकले दमए ज़िन्दगी तू ना कर इतने सितमखाने के लाले…

मैं मेरी तन्हाई और अधूरे ख्वाब
बंद कमरा, खुली आंखों में जागते कई ख्वाबमैं, मेरी तन्हाई चार दिवारी और चंद किताब घड़ी की टिक-टिक, काली सियाह अंधेरी रातबढ़ती उम्र, मांगती नाकामयाबी का हिसाब फिर पूछूं जो खुद से सवाल, किया क्या अब तकगहरी सोच, खामोश लब, नहीं मिलता कोई जवाब ‘उम्मीद’ ही सोच के समंदर में डूबती कश्ती को सहारा देतीआवाज़…

आओ नया मुल्क बनाएं…
हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई चारों मिलएक थाली में खाएंमुल्क की तरक्की का ज़िम्माअपने कंधों पर हम उठाएंआओ नया मुल्क बनाएं हरा सफेद केसरिया मिला एक तिरंगाअपने हाथों में उठाएंचारों मिल उसे बुलंदियों पर ले जाएंशीश शिखर पर अपना हम उठाएंआओ नया मुल्क बनाएं क्यों ना तहज़ीबों की एक मशाल बनाएंएकता की चिंगारी से नफरतों को…

बंद कमरा, खुली आंखों में जागते कई ख़्वाब
बंद कमरा, खुली आंखों में जागते कई ख़्वाबमैं, मेरी तन्हाई चार दिवारी और चंद किताब घड़ी की टिक-टिक, काली सियाह अंधेरी रातबढ़ती उम्र, मांगती नाकामयाबी का हिसाब फिर पूछूं जो खुद से सवाल, किया क्या अब तकगहरी सोच, खामोश लब, नहीं मिलता कोई जवाब ‘उम्मीद’ ही सोच के समंदर में डूबती कश्ती को सहारा देतीआवाज़…

हमारी हिंदी, पहचान हमारी
हिन्द से बने है हिंदी, हिंदी से हमहमसे बने है हिंदुस्तान आन, मान, मर्यादा सब का रखे ध्यानहिंदी से मिलती हमें एक अलग पहचान नफरत की तीखी गोली मेंये अमृत सी मीठी बोली लाए दीन-हीन को गले लगाना सिखाएभटके मुसाफिरों को सही रास्ता दिखाए जब-जब हवा में हिंदी की ख़ुशबू आएअंग्रेजी की अकड़ से जब…