
कविताएं

मन की आंखों से देखें सब दिखेगा…
ये मौसम ये वादियां ये कोह ये नज़ारेखुदा ने ज़मीं पर हम सब के लिए उतारेये लहरें ये जलतरंग ये बहर ये बहारेंखुदा ने ज़मीं पर हम सब के लिए उतारे ये दरिया ये भँवर ये कश्ती ये किनारेख़ुदा ने ज़मीं पर हम सब के लिए उतारेये चाँद ये सूरज ये रौशन ये सितारेख़ुदा ने…

दर्द देकर, दवा बताते हो
दिल-लगी कर के दिल कहीं और लगाते होरकीबों की बातों पर तुम जो यूँ मुस्कुराते हो हम जागते हैं तन्हा रातों कोजुगनुओं तुम पुर-सुकून कैसे सो जाते हो सुना है करते हो रौशन जहाँ ये साराफिर हमे ही क्यों अंधेरे में छोड़ जाते हो खाई थी क़सम तुमने किए थे कसीर वादेकरके वा’दा-ए-दीद वादा तोड़…

क्या गम है, जो छुपाते हो ?
क्या गम है जो छुपाते हो, सहमे से रहते होअंदर ही अंदर में बोलकर किसे समझाते होगम में रहकर भी जीना, कोई जीना हैवजह तुम किसी से क्यों नहीं बताते हो? औरों को मस्जिद का रास्ता बता करखुद मयखाने की तरफ निकल जाते होजिंदगी के सबक तो सीख लिए हैं पहले हीअब आईना देखने से…

जानें कहां गया वो बचपन सुहाना
समय का पहिया ऐसा पलटादिन बीते, बीती रातेंगुजर गया वो ज़मानाजानें कहां गया वो बचपन सुहाना हम थे हरफनमौलाना फिक्र थी क्या नया क्या पुरानाजो मिला सब को अपना मानाजानें कहां गया वो बचपन सुहाना हैं कई यादें, है यादों का खज़ानायाद आता है वो ज़िद परदादी, नानी का किस्सा सुनानाजानें कहां गया वो बचपन…

यूं ही नहीं ये पत्रकार कहलाते हैं
हर बात की तह तक जाते हैंझूठे नक़ाब बेबाकी से उठाते हैंउठाएं जो कलम तो गागर में सागर भर देंयूं ही नहीं ये पत्रकार कहलाते हैं परिस्थितियों से ये ना घबराते हैंजान की बाजी बेखौफ लगाते हैंक़िरदार वफ़ा का क्या खूब निभातेयूं ही ये पत्रकार कहलाते हैं मजलूमों की आवाज़ बन जाते हैंज़रूरत पर तख्त-ओ-ताज़…